Monday, June 23, 2014

Kya Dilli Kya Lahore!!

Last Saturday, I attended an event by Zee to launch their new channel ‘Zindagi’ and what pushed me to attend the event was the very tagline of the Channel : Zindagi, Jodey Dilon Ko. An attempt aimed at connecting two nations, I was quite excited for the launch event, since even we have grown up watching Pakistani Plays and Pakistani shows on PTV.
While sitting in the hall, I penned down a few lines on the issue and I hope you all would like it.



क्या दिल्ली, क्या लाहौर!!
हम आज भी उमर शरीफ देख हॅसते हैं,
दिलों में उनके भी शाहरुख बस्ते हैं.
हुआ करती थी मंज़िल एक कभी यह,
आज अलग अलग हुए ह्‌मारे रास्ते हैं.

हम एक थे इतिहास के किस्सों में,
क्यूँ बाँट दिया हमें दो हिस्‍सों में,
क्या कोई मुझे यह समझायेगा,
क्या फर्क है इन दो हिस्सों में.

ज़मीन को अलग कर दिया हो चाहे,
पर खुश्बू मिट्टी की ना जुदा हो पाये.
नहीं है फ़ासला लाहौर अमृतसर में,
तो दिलों में फ़ासले कैसे हो पाये.

यह हवायों की मासूमियत के भी क्या कहने,
जब चलती हैं यह अमृतसर में शोर से,
ना यह देखे ना जाने कोई सरहद,
चुनरी उड़ती जाये लाहौर में.

मुझे भी हवा का झोंका बना दो यार,
मैं भी देख लूँ उधर का प्यार,
उस ज़मीन की मिट्टी को लगाना है माथे,
मुझको भी दिखा दो कोई लाहौर एक बार.

कभी कभी सोचे यह मन मेरा,
सियासत के खेल में देश लुट गया मेरा,
मेरे मन की यह कुछ ख्वाहिशें है,
इस बारें में बता, क्या ख्याल है तेरा.

क्यूँ ना इन दो भाइयों को फिर से मिलायें,
क्यूँ ना हम इक नया जहाँ बनायें,
बीती हुई कड़वी यादों को भूल,
हम अमन की आशा चारो और फैलायें.

आओ प्यार के दिये जला दें चारो और,
बांटें इतना प्यार, जिसका ना हो कोई छोर.
अब दो देशों की दूरियाँ मिट जाने दो,
क्या हो दिल्ली, क्या लाहौर.
अब दिलों की दूरियाँ मिट जाने दो,
क्या हो दिल्ली, क्या लाहौर.



While I sincerely hope that this new channel will be a step forward, let us vow too for a cordial Indo-Pak relationship. 

Tuesday, June 10, 2014

Loving beyond Social Barriers!!


Condemn Honour Killing, just coz there is no honour in Killing.


A couple of days back, I came across a news clipping regarding 'honour killing' and all the thoughts within my mind came to halt. I tried penning down a story of two lovers, who loved beyond the social barriers, but may not unite due to the artificial social barricades.

रात बहुत है हो चली,
हम घूमे यादों की गली.
जब मैं और तुम बने थे हम,
खुशियाँ जो थी कभी ना कम.
ज़िंदगी की हर खुशी तुझसे ही थी,
तेरी हर आरज़ू की तमन्ना हमने की.
तेरी मुस्कुराहट की चाहत हर पल थी,
झुकी तेरी नज़र और दिल में हलचल थी.
तेरे होने से एक अजब सा एहसास था,
पर इस रिश्ते का नाम हर पल राज़ था.

आया जब वक़्त इस रिश्ते को नाम देने का,
तब इकरार से ना जाने यह दिल घबराया.
मुझे प्यार है तुमसे कहते कहते,
तुमने इस रिश्ते का नाम दोस्ती बताया.
पर जाने क्या मजबूरी रही होगी तुम्हारी,
फिर एक दिन तुमने इस दोस्ती को भी ठुकराया.
बेवफाई तुम्हारी ना होगी तुम्हारी मंज़ूरी से,
यही कहके फिर हमने अपने दिल को समझाया.

आज मिले जब फिर से उन्हीं राहों पे,
तो पढ़ ली हमने यह आँखें तुम्हारी.
मुझे आज भी प्यार है तुमसे,
कह गयी हमसे यह साँसें तुम्हारी.

इस इज़हार की खुशी तो थी दिल में,
पर एक सवाल ज़रूर मन में आया था..
तुम दूर गये थे मुझसे क्यूँ,
यह आज भी ना तुमने बताया था..
जब हम थे एक साथ, प्यार था तब भी,
फिर तब तुमने ना क्यूं प्यार जताया था..
जब मालूम था के ज़िंदगी कटेगी ना बिन तेरे,
फिर क्यूँ जान बूझके मुझे सताया था..

यह सुनके वो बस इतना ही कह पायी थी,
तेरी खातिर ही हमने यह ज़िंदगी ठुकराई थी.
तुमसे प्यार करना खिलाफ था समाज के उसूलों के,
तुझे इन्कार करके ही हमने अपनी वफ़ा निभाई थी.

यह सुनके हमने अपनी ज़िन्दगी को गले लगाया,
विश्वास हमारा ना टूटा, यह सूकून पाया.
एक वो वक़्त था और एक आज है,
इस प्यार के बीच क्यूँ आता समाज ह..
इंसानों में क्यूँ छोटा बड़ा बनाया,
एक दूसरे के बीच क्यूँ फ़ासला बनाया.

चाहे दर्मियाँ हो जितनी मरज़ी दूरियाँ,

हमें दूर ना कर पायेंगी यह मजबूरियाँ.
नहीं भूलेंगे हम किये एक दूसरे से वादे,
मर कर भी ज़िंदा रहेंगे हम इश्क़ज़ादे.

I hope you like it. :)